सरोगेसी क्या है?
सरोगेसी एक विशेष प्रकार की व्यवस्था होती है जिसमें एक महिला, जिसे हम ‘सरोगेट माँ’ कहते हैं, किसी दूसरे व्यक्ति या दंपति के लिए बच्चे को जन्म देती है। इस महिला का बच्चे के साथ जैविक संबंध नहीं होता, यानी वह बच्चे की असली माँ नहीं होती। सरोगेसी का इस्तेमाल आमतौर पर उन लोगों द्वारा किया जाता है जो विभिन्न कारणों से खुद बच्चे को जन्म नहीं दे सकते।
सरोगेसी का हिंदी में अर्थ –
हिंदी में सरोगेसी का अर्थ होता है ‘किराए की कोख’। इसका मतलब है कि एक महिला अपने गर्भ को किसी और के लिए उपलब्ध कराती है ताकि वह व्यक्ति या दंपति माता-पिता बन सकें। यह बहुत ही खास और जिम्मेदारी भरा काम होता है। सरोगेसी के जरिए, कई लोग जो पहले माता-पिता नहीं बन पाए थे, वे अब बच्चे की खुशियाँ मना सकते हैं।
पारंपरिक सरोगेसी में, सरोगेट माँ उस बच्चे की जैविक माँ भी होती है। इसका मतलब है कि बच्चे की जैविक माँ वही महिला होती है जो उसे जन्म देती है। इसमें डॉक्टर एक प्रक्रिया के जरिए बच्चे को महिला के गर्भ में विकसित करते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर तब अपनाई जाती है जब बच्चे के असली माता-पिता जैविक रूप से बच्चे को जन्म नहीं दे सकते।
जेस्टेशनल सरोगेसी में, सरोगेट माँ बच्चे की जैविक माँ नहीं होती। इस प्रकार की सरोगेसी में, बच्चे को एक अलग महिला के गर्भ में विकसित किया जाता है, लेकिन बच्चे का जेनेटिक संबंध उस महिला से नहीं होता, जो उसे जन्म देती है। इसमें बच्चे के असली माता-पिता के जीन्स का उपयोग किया जाता है, और फिर बच्चे को सरोगेट माँ के गर्भ में विकसित किया जाता है। यह तब अपनाया जाता है जब एक महिला जैविक रूप से बच्चे को जन्म नहीं दे सकती, लेकिन वह और उसके पति के जीन्स का उपयोग करके बच्चे को जन्म देना चाहते हैं।
सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू होने से पहले, सबसे पहले एक सरोगेट माँ का चयन किया जाता है। यह वह महिला होती है जो दूसरे के लिए बच्चे को जन्म देगी। इसके बाद, उस महिला और बच्चे के इच्छित माता-पिता के बीच एक समझौता होता है, जिसमें सभी नियम और शर्तें स्पष्ट की जाती हैं।
समझौते के बाद, डॉक्टर्स और कानूनी विशेषज्ञ कुछ जरूरी चिकित्सा और कानूनी प्रक्रियाएं करते हैं। चिकित्सा प्रक्रिया में सरोगेट माँ के शरीर को बच्चे के विकास के लिए तैयार करना शामिल होता है। कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि सभी नियमों का पालन हो और सरोगेट माँ और बच्चे के इच्छित माता-पिता के अधिकार सुरक्षित रहें।
जब सरोगेट माँ गर्भवती हो जाती है, तो उसे नियमित रूप से डॉक्टर्स की निगरानी में रखा जाता है ताकि सुनिश्चित हो सके कि गर्भावस्था सामान्य रूप से प्रगति कर रही है। गर्भावस्था का समय पूरा होने के बाद, सरोगेट माँ बच्चे को जन्म देती है, और उसके बाद बच्चा उसके इच्छित माता-पिता को सौंप दिया जाता है।
भारत में सरोगेसी से जुड़े नियम काफी सख्त हैं। ये नियम सरोगेसी के जरिए बच्चे के जन्म और उसकी परवरिश से जुड़ी हर चीज को ठीक से नियंत्रित करते हैं। इन नियमों में यह भी बताया जाता है कि कौन सरोगेट माँ बन सकती है, कौन इच्छित माता-पिता बन सकते हैं, और इस प्रक्रिया में क्या-क्या कदम उठाने चाहिए।
सरोगेसी में सरोगेट माँ और बच्चे के इच्छित माता-पिता के अधिकार बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। सरोगेट माँ को इस बात का अधिकार होता है कि वह सुरक्षित रहे और उसकी ठीक से देखभाल की जाए। इसी तरह, इच्छित माता-पिता का अधिकार होता है कि बच्चे का जन्म होने के बाद वे उसे अपना सकें और उसकी परवरिश कर सकें।
सरोगेसी से जुड़े कई नैतिक मुद्दे होते हैं। नैतिक मुद्दे वो सवाल होते हैं जो यह तय करते हैं कि कुछ करना सही है या गलत। जैसे, क्या सरोगेट माँ को पैसे देना उचित है? क्या सरोगेसी से बच्चे के लिए और उसकी असली माँ के लिए कोई समस्या हो सकती है? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे हमें सरोगेसी की प्रक्रिया को ठीक से समझने में मदद करते हैं।
सरोगेसी का भारतीय समाज पर भी कुछ प्रभाव पड़ता है। कुछ लोग इसे सही मानते हैं क्योंकि यह उन लोगों की मदद करता है जो माता-पिता बनने के लिए इच्छुक होते हैं लेकिन खुद से बच्चे का जन्म नहीं दे सकते। लेकिन कुछ लोग इसे सही नहीं मानते क्योंकि वे मानते हैं कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया से अलग है। इसलिए, सरोगेसी को लेकर समाज में विभिन्न विचार होते हैं।
सरोगेसी से जुड़ी कुछ बड़ी बहसें कानूनी और नैतिक होती हैं। कानूनी बहस में यह सवाल होता है कि सरोगेसी के लिए क्या-क्या नियम होने चाहिए और ये नियम कैसे सभी की मदद कर सकते हैं। नैतिक बहस में यह सवाल होता है कि क्या सरोगेसी सही है या नहीं, और इससे लोगों पर क्या असर पड़ता है।
सरोगेसी से जुड़े लोगों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सरोगेट माँ को अपने स्वास्थ्य और भावनाओं का ध्यान रखना होता है, जबकि इच्छित माता-पिता को बच्चे के लिए तैयार होना और उसे अपनाने की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसमें कभी-कभी भावनात्मक और वित्तीय चुनौतियाँ भी शामिल होती हैं।
सरोगेसी, जिसका हिंदी में मतलब ‘किराए की कोख’ होता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला दूसरे व्यक्ति या दंपति के लिए बच्चे को जन्म देती है। इसमें दो प्रकार होते हैं: पारंपरिक सरोगेसी और जेस्टेशनल सरोगेसी। इस प्रक्रिया में कई कानूनी, नैतिक और सामाजिक विचार शामिल होते हैं, और सरोगेट माँ तथा इच्छित माता-पिता के अधिकारों का बहुत महत्व होता है।
भारत में सरोगेसी का भविष्य बहुत संभावनाओं से भरा है। जैसे-जैसे लोग सरोगेसी के बारे में अधिक जानेंगे और समझेंगे, इसके नियम और प्रक्रियाएं भी बेहतर होती जाएंगी। यह उम्मीद की जाती है कि भविष्य में सरोगेसी और भी सुरक्षित और स्वीकार्य बनेगी, और इससे और अधिक परिवारों को बच्चे की खुशी मिलेगी।
MBBS, DGO, DIPLOMA IN USG and Color Doppler, FMAS, FELLOWSHIP IN INFERTILITY (IVF), MASTERS IN COSMETIC GYNECOLOGY, COSMETIC GYNECOLOGY
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