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सरोगेसी का मतलब क्या होता है?

सरोगेसी का मतलब क्या होता है?

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सरोगेसी का मतलब क्या होता है?

सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े के लिए बच्चे को जन्म देती है। यह व्यवस्था अक्सर तब अपनाई जाती है जब कोई महिला चिकित्सा समस्याओं के कारण गर्भधारण नहीं कर पाती है। सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान, बच्चा सरोगेट के गर्भ में विकसित होता है । बच्चा जन्म के बाद उसे इच्छित माता-पिता को सौंप दिया जाता है। भारत में सरोगेसी की लागत कई कारकों से प्रभावित होती है, जिसमें चिकित्सा प्रक्रिया, शुल्क, सरोगेट माँ से संबंधित खर्च और कानूनी लागतें शामिल हैं। भारत में सरोगेसी की कीमत ₹10 लाख से लेकर ₹20 लाख तक होती है। यह कीमत स्थान, क्लिनिक और प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर  होती है।

सरोगेसी दो प्रकार की होती है:

  • पारंपरिक सरोगेसी (Traditional Surrogacy): इसमें सरोगेट महिला का अंडाणु प्रयोग किया जाता है। वह बच्चा बायोलॉजिकल रूप से उसी महिला का होता है।

  • गर्भावधि सरोगेसी(Gestational Surrogacy): इसमें सरोगेट महिला का कोई जैविक संबंध नहीं होता है। क्योंकि बच्चे का अंडाणु और शुक्राणु दंपत्ति से लिया जाता है। इस भ्रूण को सरोगेट महिला के गर्भाशय में डाला जाता है।

सरोगेसी की प्रक्रिया

सरोगेसी एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है। जिसमें एक महिला (सरोगेट मां) किसी अन्य महिला या दंपत्ति के लिए बच्चा जन्म देती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न चरणों होते हैं। इसके विभिन्न चरणों का पता लगाते है।

  1. चरण 1: चयन और सहमति - दंपत्ति और सरोगेट मां के बीच सहमति की प्रक्रिया होती है। दोनों पक्षों को पूरी जानकारी दी जाती है, दंपत्ति और सरोगेट मां के बीच सहमति की प्रक्रिया होती है। इस के बाद में सरोगेट मां इस प्रक्रिया के लिए स्वीकृति प्रदान करती है।

  2. चरण 2: मेडिकल परीक्षण और तैयारी - सरोगेट मां का शारीरिक और मानसिक जांच किया जाता है। इसके अलावा, दंपत्ति से अंडाणु (अंडे) और शुक्राणु (स्पर्म) प्राप्त किए जाते हैं।

  3. चरण 3: गर्भाधान प्रक्रिया - इस मै दंपत्ति के अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में मिलाया जाता है। इस प्रकिया भ्रूण तैयार किया जाता है। फिर भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

  4. चरण 4: गर्भावस्था और देखभाल - सरोगेट मां को गर्भावस्था के दौरान नियमित मेडिकल जांच और देखभाल की होती है। इस दौरान, दंपत्ति को भी सरोगेट मां के साथ सहयोग करना होता है।

  5. चरण 5: जन्म और बच्चा सौंपना - जब बच्चा जन्म लेता है। तो उसे कानूनी रूप से दंपत्ति को सौंप दिया जाता है। कानूनी रूप से सरोगेट मां का कोई अधिकार बच्चे पर नहीं होता है।

सरोगेसी के कानूनी पहलू

भारत में सरोगेसी से संबंधित कई कानूनी पहलू होते हैं। जिन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है। भारत सरकार ने 2021 में "सरोगेसी (नियमन) विधेयक" को पारित किया । जिसमें कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं।

  1. दंपत्ति के लिए शादी का प्रमाणपत्र होना आवश्यक है।

  2. सरोगेट मां का स्वास्थ्य, उम्र और मानसिक स्थिति सुनिश्चित की गयी है।

  3. कानूनी दस्तावेज़ों के माध्यम से सरोगेट मां और दंपत्ति के बीच अनुबंध किया जाता है। जिसमें दोनों पक्षों की सहमति और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाता है।

सरोगेसी के फायदे और नुकसान

सरोगेसी के संभावित लाभों और नुकसान की समीक्षा है। सरोगेसी मै संभावित कुछ लाभों जैसे, बच्चा न होने का विकल्प, मानसिक शांति और वैज्ञानिक मदद मिलती है। संभावित कुछ नुकसान की समीक्षा जैसे तनाव, कानूनी जटिलताएं, आर्थिक होती है

फायदे:

  1. बच्चा न होने का विकल्प: उन दंपत्तियों के लिए, जो शारीरिक कारणों से बच्चे नहीं कर सकते है। उन दंपत्तियों सरोगेसी एक उपयुक्त विकल्प है।

  2. मानसिक शांति: दंपत्ति को यह मानसिक शांति मिलती है । जब वे अपने बच्चे को देख पाएंगे।

  3. वैज्ञानिक मदद: सरोगेसी में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की मदद से गर्भधारण की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाता है। जिससे सफल गर्भावस्था की संभावना बढ़ जाती है।

नुकसान:

  1. भावनात्मक तनाव: सरोगेट मां और दंपत्ति के बीच भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न हो सकता है। जो बाद में तनाव का कारण बन सकता है।

  2. कानूनी जटिलताएं: यदि सरोगेट मां बच्चे के जन्म के बाद अपने अधिकार का दावा करती है। तो कानूनी संघर्ष हो सकता है।

  3. आर्थिक बोझ: सरोगेसी की प्रक्रिया महंगी होती है। इसे अपनाने वाले दंपत्तियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ता है।

सरोगेसी के लिए योग्यता

यह विषय उन मानदंडों की चर्चा करता है। जो सरोगेसी के लिए योग्यता निर्धारित करते हैं।

  1. दंपत्ति: दंपत्ति का वैध विवाह होना चाहिए। उनकी आयु 23 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

  2. सरोगेट मां: सरोगेट मां की आयु 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए। उसे पहले एक स्वस्थ बच्चा जन्म देना चाहिए । सरोगेट मां की मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए।

  3. कानूनी सहमति: दंपत्ति और सरोगेट मां दोनों को कानूनी सहमति देनी होती है। यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी पक्ष असहमति न हो।

  4. स्वास्थ्य की जांच: सरोगेट मां का स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाता है। जिसमें शारीरिक और मानसिक स्थिति की जांच शामिल होती है।
     

सरोगेसी के सामाजिक और नैतिक

सरोगेसी के साथ जुड़े कई सामाजिक और नैतिक मुद्दे होते हैं। जिन पर विचार करना आवश्यक होता है।

  1. शोषण का खतरा: यदि सरोगेट मां की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। तो उसे शोषित किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है, कि सरोगेट मां को उचित और सम्मानजनक तरीके से व्यवहार किया जाए।

  2. भावनात्मक मुद्दे: सरोगेट मां का बच्चे से भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है। जो बाद में मुश्किलों का कारण बन सकता है। खासकर जब बच्चे को दंपत्ति को सौंपा जाता है।

  3. सामाजिक दृष्टिकोण: कुछ समाजों में सरोगेसी को गलत समझा जाता है। यह पारंपरिक पारिवारिक मान्यताओं के खिलाफ हो सकता है।

सरोगेसी के इन सामाजिक और नैतिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए। इसे कानून और प्रक्रियाओं के तहत किया जाना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार का शोषण या अन्याय न हो।

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